Tuesday, July 04, 2006

हे मुम्बइ! फिर मिलेंगे...

क्या झमाझम झम झम झम बारिश गिर रही है! ऐसे लगता है कोइ बाल्टी लेकर ऊपर से पानी नीचे फैंके जा रहा है। ऐसे लगता है किसी ने ट्यूबवैल का फव्वारा चला दिया हो!

आज सुबह मैं जल्दी उठा, मेरे एक दोस्त नें हवाइ अड्डे का एक काम सौंपा था। कल मैंने उसे कहा था कि यहां बहुत अस्तव्यस्तता फैली हुइ है मैं निश्चित नहीं कह सकता कि तेरे कार्य को सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकूं। खैर उसका काम तो निपट गया और फिर मैं ऑफिस के लिए चल दिया पर लगभग ऑफिस तक पहुंच कर बैरंग वापिस लौटना पडा। सारे रास्ते बंद मिले। वापिस जब लौटा और घर के पास पहुंचा तो घर पहुंचने का रास्ता भी आज बंद मिला है।

अब ‘हाइवे कहलाने वाली’ सडक पर एक कोने में गाडी खडी कर के आपको वृत्तांत लिख अपना समय काट रहा हूं। मेरे विचार से मुझे एक सुरक्षित सा कोना मिल गया है और यहां कोइ खतरा नहीं होना चाहिए!

सडक पर चारों तरफ कोलाहल है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट लगभग बन्द सा है और लोग छतरी सिर के ऊपर लगाने का जैसे शगुन सा करते हुए इधर उधर भटकते हुए अपने अपने ठिकानों को पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं।

यहां तक मैंने सडक के कोने से ही लिखा था।

फिर मेरे ऑफिस के सहकर्मी जो घर के पास ही रहते हैं आ गये थे और उन्होंने कहा कि चलो यहां से अब पैदल ही घर चलते हैं। एक हाथ में जूते और दूसरे हाथ में लैपटॉप और छतरी लिए मैं अनमने भव से साथ चल दिया। पर जब पानी घुटनों से ऊपर आने लगा तो मैं वापिस लौट लिया। इसके बाद मैं गुड्डी बुआ के घर चला गया और वहां पकौडे खा कर सो गया।

मुम्बइ की बारिश से मेरा पहला साक्षात्कार लगभग सोलह साल पहले हुआ था जब मैं अपने अभियांत्रिकी प्रशिक्षण के लिए यहां एक महीना रुका था। मुझे याद है कि मैं नये नये जूते खरीद के लाया था और पता नहीं किस तरह मां का कहना मान पुराने जूते भी रख लाया था। फिर नये जूते मैंने यहां केवल एक दिन पहने थे। मैंने गिनती की थी कि 18 दिनों तक मुझे सूर्य नहीं दिखा था जिससे मेरे जैसे खुश्क प्राणी को बहुत परेशानी हुयी थी।

निम्न, मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के लिए भी यह शहर बहुत चुनौती भरा शहर है। जब बारिश नहीं हो रही होती तब भी किसी एक स्थान से दूसरे स्थान जाना अपने आप में एक प्रकल्प सा बन जाता है। यदी आप 2 कि0मी0 दूर जाकर भी वापिस लौटना चाहते हैं तो भी आप इस बात की भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि आप 15 मिनट में लौटेंगे या 2 घंटे में। मुम्बइ में कई पती पत्नियों के बीच इस कारण भी काफी झगडे हो जाते हैं क्योंकि स्वभाव से शकी महिलाएं सोचने लगती हैं कि 5 मिनट की दूरी 2 घंटे में तय कर के आया है ज़रूर दाल में कुछ काला है!

पर ये चुनौतियां वे वाली चुनौतियां नहीं हैं जिनको लांघ कर हम ज़माना बदलते हैं। ये असल में एक सम्भवत: तेजस्वी और वैभवशाली समाज की प्रगती के रोड़े हैं। मुम्बइ में केवल एक कार्य करने के लिए ही बाहर से आकर यहां बसा जा सकता है और वह है इस शहर की व्यवस्था सुधारना। पर मैं खुद इस शहर में नौकरी के पीछे पीछे आया था और हर रोज़ असंख्य जनता रोज़ी रोटी के लिए अपना रास्ता मुम्बइ की तरफ कर लेती है।

खैर छोडो मुम्बइ की समस्याओं को – दसवीं मंज़िल पर मॉनसून के नज़ारे बहुत लुभावने हैं। यदी दुनियादारी और रोटी कमाने की चिंता ना हो तो यहां की बारिश वाह क्या मज़ेदार है। समुद्र यदी आपकी खिड़की के आसपास नहीं भी है तो भी हवाएं ऐसी चलती हैं मानो आप समुद्र तट पर ही खडे हों। इस मॉनसून को मिला कर मैंने मुम्बइ के 4 मॉनसून देख लिए हैं और हर बार उसने मुझे अपने स्वरूप से प्रसन्न, विस्मित और परेशान किया है।

पिछ्ले साल जो 26 जुलाई को हुआ मैं उसके आनंद से विमुख रह गया था। आनंद? हज़ारों जानें गयीं हज़ारों करोड़ का नुकसान हुआ और मैं उसे आनंद कह रहा हूं? पिछली साल मैं बाल बाल बच गया था 26 जुलाई के अनुभव से। मैं दिल्ली हवाई अड्डे पर मुम्बइ के लिए विमान लेने के लिए खड़ा था कि पता चला कि मुम्बइ के लिए सभी हवाई सेवाएं रद्द कर दी गयी हैं। इण्डियन एयरलाइंस वालों ने जब हमे होटल में भेज दिया और कमरे पहुंच कर जब मैंने टीवी खोला और कुछेक मित्र सम्बन्धियों से मुम्बइ में सम्पर्क किया तो मैंने कहा शुक्र है यहां दिल्ली में फंसा नहीं तो सम्भव था कि महालक्ष्मी स्टेशन के एक कोने में बारिश से बचने के लिए छ्त ढूढ रहा होता! पर अगर ऐसा हो भी जाता तो हो जाता... उसे मैं वैसे ही लेता जैसे मुम्बइ वासी रोजमर्रा की चुनौतियों को लेते हैं – स्पोर्टस् स्पिरिट में।

पर मेरे लिए मुम्बइ के स्पोर्टस् बतेरे हो गए हैं। मुझे जहां जितनी इस बात की खुशी है कि मुझे कोपनहेगन, जो शायद पृथिवी के चुनिंदा सुरम्य शहरों की श्रेणी में आता है, मैं एक साल रह कर पढने का मौका मिला है वहां उससे अधिक इस बात की तसल्ली है कि मुम्बइ के स्पोर्टस् का स्थान सामान्यत: स्पोर्टस् समझे जानी वाली गतिविधियां ले सकेंगी!

6 comments:

अनूप शुक्ल said...

शायद पहली बार देखा यह क्या,क्यों,कैसे? सो बधाई,स्वागत,शुभकामनायें हिंदी में लिखना
शुरू करने के लिये!

रवि रतलामी said...

...मुम्बइ में कई पती पत्नियों के बीच इस कारण भी काफी झगडे हो जाते हैं क्योंकि स्वभाव से शकी महिलाएं सोचने लगती हैं कि 5 मिनट की दूरी 2 घंटे में तय कर के आया है ज़रूर दाल में कुछ काला है!...

शुक्र है मैं मुम्बई में नहीं रहता. परंतु जब मैं रतलाम में किरोसीन चलते आटो टैम्पो तथा सड़कों की धूल युक्त वातावरण में कहीं दस पंद्रह मिनट भी बाहर जाकर लौटता हूँ तो मुझे खुद का मुँह काला मिलता है! :)

आलोक said...

c/मुम्बइ/मुम्बई
c/हवाइ/हवाई
c/हुइ/हुई
c/कोइ/कोई
c/यहां/यहाँ
c/पती/पति
c/फंस/फँस
c/स्पोर्टस्/स्पोर्ट्स

आमची मुम्बई में मैंने भी कुछ दो साल काटे हैं। दुनिया में अनोखी है। और आपकी लेखन शैली भी। स्वागत है।

संजय बेंगाणी said...

स्वागत हैं आपका खुन्दक भाई. आपकी मौसी का पता क्या हैं? ;)
और इस बधाई तथा स्वागत हैं आदी के चक्कर में न आना, यह सब फंसाने वाले शब्द हैं. एक बार चिट्ठाकारी में आ गये तो निकल नहीं पाओगे.
हमने चेता दिया हैं, पर हमारी सुनना मत और् अपना लिखना जारी रखना.

Pratik Pandey said...

मुम्बई की झमाझम बारिश को अपनी क़लम में स्याही की तरह भरकर बहुत ही बढिया और प्रवाहपूर्ण लेख लिखा है। लिखते रहिए इसी तरह... उम्मीद है आपकी अगली प्रविष्टि ज़रा जल्दी पढ़ने को मिलेगी।

Rajiv said...

और मैं खुन्दक का वो खुशनसीब दोस्त हूं जिसने उसे हवाई अड्डे का कुछ काम बोला था.

इधर विदेश में बैठे मैं NDTV पर मुम्बई की बुरी हालत देख कर सोच रहा था कि खुन्द्क भाई को बड़ी परेशानी में डाल दिया है.

आपने भी मुझे थोड़ा तो परेशान करने की खातिर दूरभाष पर यूं ही झूठमूठ बोल दिया कि आप हवाई अड्डे जा ही नहीं पाये?

खैर आपका बहुत शुक्रिया कि आपने इतनी भारी बरसात में भी मित्रता के नाते मेरा काम किया. और हां, आपके लेखन से तो मैं एक लम्बे समय से प्रभावित रहा हूं. आपकी प्रतिभा से अब दूसरे साथियों को भी थोड़ा मनोरंजन मिल रहा है, सो "लगे रहो, खुन्दक भाई"! एक बार फिर से आपको कोपेनहेगन के लिये बधाई.

जल्द मिलने की उम्मीद में.

आपका मित्र
मैं